चलो आज फिर उस चमकती रेत के सागर पर
जहा एक दूजे का हाथ थाम
दूनिया से अंजान हो जाया करते थे !
वही तो एक सागर था
जो खाली होके भी मन भर जाया करता था
वहा ना दूनिया की कडवी बाते थी
और ना ही किसी की उम्मीदे नजर आती थी
बस वही शांति जिन्दगी बना जाती थी !
जहा एक दूजे का हाथ थाम
दूनिया से अंजान हो जाया करते थे !
वही तो एक सागर था
जो खाली होके भी मन भर जाया करता था
वहा ना दूनिया की कडवी बाते थी
और ना ही किसी की उम्मीदे नजर आती थी
बस वही शांति जिन्दगी बना जाती थी !
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