Saturday, 4 August 2018

खयाली पुलाव

जिन्दगी एक खयाली पुलाव बनके रह गई है,
सुबह से शाम हुई, और शाम से रात ,
रात को फिर आँखे बंद कर अपने मन मे,
पकाने लगी खयाली पुलाव मै,
जो असलियत मे पुरा होता सा नही दिखता है,
उसे फिर मन मे सोच सोचकर खुश होने लगी मैं,
ना जाने ये बेबाक सपने कब पूरे होंने है,
मगर मैं तो अभी से ही इन्हे सच मानने लगी थी ,
जिन्दगी एक खयाली पुलाव बनके रह गई है ,
जो सच है वो मन को भाता नही ,
और जो मन को भाता है वो होता नही ,
क्या करे क्या ना करे की एसी कशमकश आयी थी ,
फंस के रह गई खयालो और हकीकत के बीच मैं !
जिन्दगी एक खयाली पुलाव बनके रह गई है ,
मगर खयालो का सहारा कब तक लेना था,
आखिर असलियत से सामना तो होना ही था ,
क्योंकि जिन्दगी तो हमी को जिनी थी,
फिर हिम्मत की और खयालो को पंख देने लगी.......

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